रविवार, 15 मई 2016

क्या विधानसभा चुनाव में नारायण चंदेल का विकल्प बनेंगे बिशुन ?

बिशुन कश्यप को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य बनाना सोची समझी रणनीति


राजेश सिंह क्षत्री
जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस


Bishun Kashyap
पिछले 23 साल से नजर अंदाज किए जा रहे बिशुन कश्यप को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य बनाए जाने से जहां उनके अथरिया कुर्मी समाज में हर्ष की लहर व्याप्त है वहीं पार्टी के ही लोग आश्चर्य चकित है। 1993 में पामगढ़ विधानसभा से प्रत्याशी बनाए जाने के बाद यह पहला अवसर है जब पार्टी ने उन पर इतना भरोसा जताया है ऐसी स्थिति में यह कोई तुक्का तो बिल्कुल नहीं हो सकता वो भी तब जब विगत 12 वर्षो से सत्ता में रहने के चलते एक-एक पद को पाने के लिए पार्टी में लंबी लाईन लगी हो, ऐसी स्थिति में इतने वर्षो बाद बिशुन कश्यप की नियुक्ति के एक ही मायने हो सकते हैं वो यह कि पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें जांजगीर-चांपा विधानसभा मंे नारायण चंदेल के विकल्प के रूप में उभारना चाहती है।
Narayan Chandel 
दो साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में जांजगीर-चांपा विधायक नारायण चंदेल और बिल्हा विधायक धरम लाल कौशिक के बीच बहुत सारी बातें चुनाव मैदान में उतरने के समय समान रही। दोनों एक ही समाज कुर्मी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं वहीं एक छत्तीसगढ़ विधानसभा में अध्यक्ष तो दूसरा उपाध्यक्ष रहते हुए चुनावी वैतरणी पार करने के लिए चुनाव मैदान में उतरे थे। दोनों के परिणाम भी एक समान रहे जब जनता ने दोनों को नकार दिया उसके बाद धरमलाल कौशिक पर पार्टी ने तत्काल भरोसा जताते हुए उन्हें प्रदेशाध्यक्ष के रूप में पूरे प्रदेश की जवाबदारी थमा दी वहीं नारायण चंदेल के समर्थक उन्हें लालबत्ती मिलने अथवा पार्टी में महत्वपूर्ण जवाबदारी मिलने की बाट जोहते रहे। नारायण चंदेल की छवि विधानसभा के भीतर और बाहर एक दबंग और जुझारू नेता की रही है जिससे उनके समर्थक उन्हें पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष धरमलाल कौशिक के मुकाबले का नेता मानते रहे हैं उसके बाद भी पिछले दो विधानसभा चुनाव में उनके टिकट का फैसला अंतिम समय में उनके पक्ष में हो पाया था। 2003 में विधानसभा चुनाव में हार के बाद ही नारायण चंदेल एक बार फिर से पूरी तरह से विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए थे तथा उन्होंने अपने चांपा विधानसभा का ऐसा कोई कोना नहीं बचा रखा था जहां वो नहीं पंहुचे थे, इसी बीच वो संगठन में प्रमुख पदों पर भी रहे लेकिन 2008 में जब टिकट वितरण का समय आया तो पार्टी उनसे किनारा करते नजर आई तथा उनके विकल्प तलाशे जाने लगे। तत्कालिन दावेदार तब यह भी दावा करते नजर आए कि पार्टी नारायण चंदेल को अंतिम मौका देना चाहती है और उनके हारने के बाद अगले चुनाव में वैसे ही उनकी दावेदारी समाप्त हो जाएगी लेकिन चुनाव के नतीजे उसके उलट आए तथा अपनी पांच साल की सक्रियता के दम पर नारायण चंदेल विधानसभा तक पंहुचने में सफल रहे। 2013 में विधानसभा चुनाव करीब आते-आते पूरी सक्रियता के बाद भी पार्टी उनका विकल्प तलाशते रही। तब पार्टी फोरम में जिले के तमाम दिग्गज नारायण चंदेल का टिकट काटकर किसी भी अन्य प्रत्याशी को टिकट दिए जाने की मांग करते नजर आए लेकिन वो जीतने योग्य दावेदार कौन होगा यह कोई नहीं बता सका तथा दबी जुबान से सारे दावेदार अपने स्वयं का नाम ही आगे करते नजर आए। इस बीच नारायण चंदेल की सीट बदले जाने की चर्चाएं भी आम हुई लेकिन पार्टी जांजगीर-चांपा विधानसभा में उसका विकल्प नहीं तलाश सकी ऐसी स्थिति में अंतिम समय में पार्टी ने एक बार फिर से उन्हीं पर अपना भरोसा जताया। 2013 का विधानसभा चुनाव अब इतिहास की बात हो गई है और अमित शाह की केन्द्रीय अध्यक्ष बनने तथा धरम लाल कौशिक के एक बार फिर से प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद संगठन चुनाव के बहाने पूरी पार्टी अभी से आगामी विधानसभा चुनाव में जुट गई है तथा पार्टी ने अभी से उसके लिए मोहरे बिठाने प्रारंभ कर दिया है ऐसी स्थिति में बिशुन कश्यप का अनायास राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य बनना महज इत्तफाक या तुक्का नहीं हो सकता। एक ही समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा प्रदेशाध्यक्ष धरमलाल कौशिक और नारायण चंदेल बराबरी के नेता माने जाते हैं वहीं बिशुन लाल कश्यप भी उसी कुर्मी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं वहीं जांजगीर-चांपा विधानसभा में अथरिया कुर्मी समाज उनके साथ खड़ा नजर आता है जो अक्सर गुटीय लड़ाई के चक्कर में नारायण चंदेल के खिलाफ दिखाई पड़ता रहा है। महंत के शहीद रामकुमार कश्यप की मूर्ति का अनावरण मुख्यमंत्री से करवाने के लिए क्षेत्र के अथरिया कुर्मी समाज के लोग और शहीद के परिजन बिशुन कश्यप के माध्यम से ही धरमलाल कौशिक तक पंहुचे तथा उनकी मदद से ही मुख्यमंत्री के महंत आने का कार्यक्रम मूर्त रूप ले पाया। यही वो क्षण रहे जब लंबे समय बाद पार्टी के लोगों को बिशुन कश्यप की सक्रियता का एक बार फिर से अहसास हुआ। इससे पहले पार्टी की ओर से बिशुन कश्यप 1993 में पामगढ़ विधानसभा के प्रत्याशी बने थे जब वो 25643 वोट पाकर 33725 वोट पाने वाले बहुजन समाज पार्टी के दाऊराम रत्नाकर से पराजित हुए थे। तब पामगढ़ में निर्दलीय दामोदर प्रसाद तीसरे तो कांग्रेस प्रत्याशी बलभद्र शरण सिंह चौथे नंबर पर रहे थे। उससे पहले 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पामगढ़ से अपना प्रत्याशी नहीं उतारकर जनता दल के आनंद मिश्रा का समर्थन किया था वहीं उसके बाद 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने उनकी जगह शकुंतला सिंह पर भरोसा जताया था। इस तरह से 1993 के बाद से ही बिशुन कश्यप को पार्टी में कोई बहुत बड़ी जवाबदारी नहीं दी गई थी। इस बीच हालांकि वो मंडी और पंचायत की राजनीति के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर भी सक्रियता बनाए रहे वहीं विधानसभा के लिए भी दावेदारी करते रहे लेकिन पार्टी केे लोग उन्हें गंभीरता से नहीं लेकर नजर अंदाज करते रहे। उसके बाद अब जबकि विधानसभा चुनाव में ढाई साल का समय शेष है पार्टी की ओर से उन्हे अचानक बड़ी जवाबदारी दी गई है तो पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चंदेल को आने वाले खतरे को भांपते हुए अभी से सावधान हो जाने की जरूरत है। 

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